पकवान क्या मज़े के लाता है चाट वाला ले कर बड़ा सा थैला आता है चाट वाला बम्बई की भेल-पूरी उज्जैन की कचौरी खा कर इन्हें हुई है हर इक ज़बाँ चटोरी रगड़ा मसाला बच्चो जिस शख़्स ने न खाया समझो कि ज़िंदगी का उस ने मज़ा न पाया टिकियाँ ये आलूओं की इस पर मज़े के छोले लज़्ज़त जो उन की पाए गूँगा ज़बान खोले देखो दही-बड़ा तो आता है मुँह में पानी अक्सर तो नाम उन का लाता है मुँह में पानी यूँ सुर्ख़ से तुले हैं ये पपड़ियाँ समोसे जो इक नज़र भी देखे खाने की बात सोचे गर्मा-गरम पकौड़े चटनी फिर इमलियों की आलू बड़े मज़े के मिर्चें भी तेज़ तीखी खाना ज़रूर बच्चो आख़िर में पानी पूरी इस को अगर न खाओ फिर चाट है अधूरी लिखी 'नियाज़' ने भी ये नज़्म चाट खा कर तुम भी सुनाओ बच्चो सब को ये नज़्म गा कर