चार बरस के मैले कुचले दुबले-पतले लड़के में थी ग़ज़ब की फुरती चौराहे पर एक तरफ़ की हरी लाइट से दूसरी सम्त की लाल लाइट तक बिजली की तेज़ी से वो आता जाता था जो मिल जाए उस के आगे फैलाता था अपनी हथेली जिस में ख़ुश-हाली और लम्बे जीवन की रेखाएँ थीं चौराहे तक ही महदूद थी उस की दुनिया जिस को उस ने नहीं चुना था ट्रैफ़िक लाइट के इर्द-गर्द था उस का जीवन वो भी उस ने नहीं चुना था टूटे पुल के नीचे उस का जनम हुआ था वो भी उस ने नहीं चुना था कल शब ट्रैफ़िक लाइट को तोड़ने वाले ट्रक से दब कर मौत हो गई उस की वो भी उस ने नहीं चुनी थी