ख़ालिक़ ने जब अज़ल मैं बनाया क्लर्क को लौह ओ क़लम का जल्वा दिखाया क्लर्क को कुर्सी पे फिर उठाया बिठाया क्लर्क को अफ़सर के साथ पिन से लगाया क्लर्क को मिटी गधे की डाल कर उस की सरिश्त में दाख़िल मशक़्क़तों को किया सरनविश्त में चपरासी साथ ख़ुल्द में जब ले गया उसे हूरों ने कुछ मज़ाक़ किए कुछ मलक हँसे हातिफ़ की दफ़अतन ये सदा आई ग़ैब से ''देखो इसे जो दीदा-ए-इबरत-निगाह है'' आदम का रफ़-डराफ़्ट है कब तक हँसोगे तुम अपरूव हो कर आया तो सज्दा करोगे तुम जन्नत में फाइलें हैं न है कोई डाइरी हूरें तो जानती हैं फ़क़त तर्ज़-ए-दिलबरी ग़िल्माँ से कुछ कहो तो सुनाए खरी खरी ये इंतिज़ाम है ये डिसिपलिन है दफ़्तरी मैं सोचता हूँ क्या करूँ ऐसी बहिश्त को ''टेढ़ा लगा है क़त क़लम-ए-सरनविश्त को'' ख़ुल्द-ए-बरीं को नाज़ था अपने मकीन पर और ये भी थे मिटे हुए इक हूर-ए-ईन पर लालच की मोहर कंदा थी दिल के नगीन पर टी-ऐ वसूल करने को उतरा ज़मीन पर इबलीस रास्ते में मिला कुछ सिखा दिया उतरा फ़लक से थर्ड में इन्टर लिखा दिया रक्खा क़दम क्लर्क ने जिस दम ज़मीन पर देखा हर एक चीज़ है क़ुदरत के दीन पर बोला कि मैं तो ज़िंदा रहूँगा रूटीन पर मुझ पर मशीन होगी मैं हूँगा मशीन पर इस आहनी सनम की इबादत है मुझ पे फ़र्ज़ नौकर हूँ बादशाह का जीता हूँ ले के क़र्ज़ ऐ सेक्रेट्रियट की इमारत ज़रा बता उस वक़्त जबकि जाते हैं अफ़सर भी बौखला होता है कौन कश्ती-ए-फ़ाइल का नाख़ुदा अफ़सर नहीं हैं इस की हक़ीक़त से आश्ना पर हम ये जानते हैं कि इंसान हैं क्लर्क दरिया-ए-रेड-टेप का तूफ़ान हैं क्लर्क