नद्दियाँ मेरे क़दमों के नीचे से बहती चली जा रही हैं पहाड़ मेरे घुटनों और दरख़्त मेरे रोंगटों पर रश्क कर रहे हैं फैली हुई ज़मीन पर मैं कितना ऊँचा हो गया हूँ चाँद मेरे माथे पर है और सूरज हाथों का खिलौना है ख़ुदा मेरी खोपड़ी के अंदर चमगादड़ की तरह फड़फड़ा रहा है समुंदर मेरा पाँव चूम रहे हैं और तहज़ीबें तेज़-ओ-तुंद हवाओं की तरह सनसनाहट पैदा कर रही हैं कि मैं ज़मीन को हाथ में ले कर इस तरह उछाल सकता हूँ जैसे बच्चे गेंद उछाला करते हैं हज़ारों बरस से मैं ने यही ख़्वाब देखा था कि मैं ख़ुदा हो जाता अब मुझे ख़ुदा रहना भी गवारा नहीं लोगों ने मेरे क़दमों पे सर रख दिए हैं लेकिन मेरा सर जो अब एक बड़ा सा बोझ बन गया है इसे मैं कहाँ रक्खूँ जन्नत मेरे दाहने हाथ में है और दोज़ख़ बाएँ हाथ में और सर पर नूर का ताज है फ़रिश्ते मेरे चारों तरफ़ हैं लेकिन अब मैं क्या करूँ मुझे तो डर लगता है कि अब मैं बूढ़ा हो गया हूँ