पतले पतले होंटों पर हैं आँखों जैसी मोटी बातें ऐसी बातें क्यूँ करते हो ज़ुल्फ़ें सपने फूल और जज़्बे अच्छा हाँ इक बात बताओ कल तुम इतने चुप चुप क्यूँ थे ख़ामोशी से यूँ लगता था जैसे सपने टूट रहे हों मुझे ख़बर है मेरी ख़ातिर तुम ने क्या किया कूकते कूकते डाल से कोयल उड़ जाती है मन का मंदिर रेज़ा रेज़ा हो जाता है मैं क्या जानूँ तुम ने क्या क्या दुख झेले हैं अच्छा आओ वा'दा कर लें ऐसी बातें नहीं करेंगे लेकिन हाँ नाराज़ न होना देख मुझ से मिलते रहना बोलो अब मैं जाऊँ यहाँ से मैं और वो अब पत्थर के हैं उसी जगह पर खड़े हुए हैं जाने कब से गड़े हुए हैं इक पत्थर में आवाज़ें हैं इक पत्थर में सन्नाटा है सन्नाटा आवाज़ का पर्दा आवाज़ें सन्नाटे का बोलो अब मैं जाऊँ यहाँ से मैं कहता हूँ जा सकते हो