दरख़्तों के नीचे मुझे सब्ज़ पत्तों की बारिश में देखो दरख़्तों की शाख़ें मुझे ढाँपने को गले मिल रही हैं हवाएँ मिरे साँस की नब्ज़ बन कर धड़कती हैं और तेज़ तर हो रही हैं मैं सूरज की किरनों से अपने बदन को बचाने की ज़िद में यहाँ आ गया था मगर सारे जंगल के पेड़ों के नीचे वही आग है जिस से बचने की ख़ातिर यहाँ आ गया था