न छेड़ साज़-ए-कुहन मेहरबाँ हुआ सो हुआ सितम जो कुछ भी तह-ए-आसमाँ हुआ सो हुआ ज़मीन-ओ-चर्ख़ के सब हादसे पुराने हैं अबस है उन का दोबारा बयाँ हुआ सो हुआ कहाँ शुरूअ' हुई रूदाद ख़त्म होगी कहाँ तवील है मत्न-ए-दास्ताँ हुआ सो हुआ गुमान-ओ-वह्म पे है क़स्र-ए-ज़ीस्त की बुनियाद हवा के दोश पे बादल रवाँ हुआ सो हुआ फ़ना के बाद बक़ा का है जाँ-फ़ज़ा मुज़्दा अटल है आदत-ए-दौर-ए-ज़माँ हुआ सो हुआ नए मकान की तामीर-ए-नौ की फ़िक्र करो तबाह बिजलियों से ख़ानुमाँ हुआ सो हुआ सुनो बहार से मंसूबा-ए-चमन-बंदी रियाज़-ए-दहर ख़राब-ए-ख़िज़ाँ हुआ सो हुआ वो देखो क़ाफ़िले दौलत-सरा-ए-हस्ती के रवाना सू-ए-अदम कारवाँ हुआ सो हुआ