मुझे दश्त-ए-तख़य्युल का सफ़र करना अगर आता तवाफ़-ए-काबा करता, ज़िंदगी को सम्त मिल जाती सहीफ़े दिल के सब बिखरे हुए मेरे सँवर जाते ग़म-ओ-आलाम मेरे भी, ग़ुबार-ए-राह बन जाते मुझे दश्त-ए-तख़य्युल का सफ़र करना अगर आता तज़ादात अब जो पैदा हैं, वो पैदा ही नहीं होते कहीं कुंज-ए-सुकूँ मिस्ल-ए-मदीना मुझ को मिल जाता मुझे दश्त-ए-तख़य्युल का सफ़र करना अगर आता जिन्हें दश्त-ए-तख़य्युल का सफ़र करना भी आता है हवा के दोश पर उड़ते हैं मिस्ल-ए-गर्द-ए-आवारा गिद्धों का झुण्ड कि मंडला रहा हो जैसे मुर्दों पर मुझे दश्त-ए-तख़य्युल का सफ़र करना नहीं आता नहीं आता तो अच्छा है, नहीं आए तो अच्छा है