बेज़ार फ़ज़ा दरपा-ए-आज़ार सबा है यूँ है कि हर इक हमदम-ए-देरीना ख़फ़ा है हाँ बादा-कशो आया है अब रंग पे मौसम अब सैर के क़ाबिल रविश-ए-आब-ओ-हवा है उमडी है हर इक सम्त से इल्ज़ाम की बरसात छाई हुई हर दाँग मलामत की घटा है वो चीज़ भरी है कि सुलगती है सुराही हर कासा-ए-मय ज़हर-ए-हलाहल से सिवा है हाँ जाम उठाओ कि ब-याद-ए-लब-ए-शीरीं ये ज़हर तो यारों ने कई बार पिया है इस जज़्बा-ए-दिल की न सज़ा है न जज़ा है मक़्सूद-ए-रह-ए-शौक़ वफ़ा है न जफ़ा है एहसास-ए-ग़म-ए-दिल जो ग़म-ए-दिल का सिला है उस हुस्न का एहसास है जो तेरी अता है हर सुब्ह-ए-गुलिस्ताँ है तिरा रू-ए-बहारीं हर फूल तिरी याद का नक़्श-ए-कफ़-ए-पा है हर भीगी हुई रात तिरी ज़ुल्फ़ की शबनम ढलता हुआ सूरज तिरे होंटों की फ़ज़ा है हर राह पहुँचती है तिरी चाह के दर तक हर हर्फ़-ए-तमन्ना तिरे क़दमों की सदा है ताज़ीर-ए-सियासत है न ग़ैरों की ख़ता है वो ज़ुल्म जो हम ने दिल-ए-वहशी पे किया है जिंदान-ए-रह-ए-यार में पाबंद हुए हम ज़ंजीर-ब-कफ़ है न कोई बंद-ए-बपा है ''मजबूरी ओ दावा-ए-गिरफ़्तारी-ए-उलफ़त दस्त-ए-तह-ए-संग-आमदा पैमान-ए-वफ़ा है''
This is a great संग दिल शायरी.