ऐ बे-नियाज़-ए-शौक़-ए-फ़रावाँ कहाँ है तू ऐ निगहत-ए-शमीम-ए-बहाराँ कहाँ है तू ऐ बाइ'स-ए-फ़रोग़-ए-गुलिस्ताँ कहाँ है तू ऐ रौनक़-ए-वजूद-ए-ख़याबाँ कहाँ है तू पथरा गई हैं आँखें तिरे इंतिज़ार में कुछ तो बता कि ऐ मह-ए-ताबाँ कहाँ है तू वो तेरे शौक़-ए-नग़्मा-सराई को क्या हुआ ऐ यार नग़्मा-रेज़-ओ-ग़ज़ल-ख़्वाँ कहाँ है तू तेरे बग़ैर कुछ नहीं लुत्फ़-ए-शराब-ओ-शे'र ऐ निगहत-ए-लतीफ़-ए-ख़याबाँ कहाँ है तू हाँ तेरे दम से रौनक़-ए-बज़्म-ए-वजूद थी ऐ रौशनी-ए-शम-ए-फ़रोज़ाँ कहाँ है तू तेरे बग़ैर ख़ाक-बसर फिर रहा हूँ मैं मेरे बग़ैर सर-ब-गरेबाँ कहाँ है तू