रेत पर सब्त हैं ये किस के क़दम हुस्न को नर्म-ख़िरामी की क़सम सर-ए-साहिल मिरी तख़ईल-ए-जवाँ गुज़री है या कोई अंजुमन-ए-गुल-बदनाँ गुज़री है मौज ने नक़्श-ए-क़दम चाट लिए मेरी तख़्ईल के पर काट लिए लोग दरियाओं के अंजाम से डर जाते हैं अब तो रस्ते भी समुंदर में उतर जाते हैं