उस ने ग़ुर्बत के बदन पे बसंती चोला पीली पगड़ी और सुनहरी जैकेट सजाई है वो टूटी कुर्सी पे बोसीदा ढोल से पैर टिकाए उधड़ा वक़्त सब्र के धागे से सीता है सजी-संवरी गाड़ी पास से गुज़रे तो आस आँख में चमकती है उस की भूक लपकती है अपनी ख़ुशियों के आँगन में ढोल की थाप पर उस के ग़म को नाचता देख रही हूँ मैं सोच रही हूँ उस की दूकान का महँगा सौदा कितने सस्ते दाम बिका है