धुएँ के फूल By Nazm << सियासत मुफ़लिसों का क़ौमी तराना >> गुम-शुदा क़ुर्बतें मक़्तल-ए-वक़्त की पहली चौखट पे सर को झुकाए हुए अपनी बे-क़ामती पर कराहें ज़रा रांदा-ए-ख़ैर-ओ-शर हूँ मगर इस घड़ी रत-जगों के लिए सारे हँसते हुए ज़ख़्म ले आउँगा इक नए दिन का आग़ाज़ हो जाएगा ख़िर्मन-ए-दिल में ख़ुशबू महक जाएगी Share on: