चैन से काट ले लम्हात-ए-असीरी ऐ दिल नींद से चौंक के तस्कीन न खो सब्र तो कर तुंद-ख़ू ये तिरे लम्हात-ए-असीरी ऐ दिल तेरे अन्फ़ास की गर्मी से हरारत पा कर सीख़चों में से गुज़रते हुए फाँदते तोड़ते दीवार-ओ-दर-ए-ज़िंदाँ को रात की राज-दुलारी को थपकते गाते सुब्ह के शोख़ सितारे की तरफ़ बढ़ते हुए सू-ए-ख़्वाबीदा-सहर मतला-ए-अनवार की सम्त बढ़ रहे हैं नई उम्मीद का दामन थामे तुंद-रफ़्तारी-ए-लम्हात-ए-असीरी की क़सम नींद से चौंक के तस्कीन न खो सब्र तो कर