मोहब्बत दाइमी सुख है कि जिस को मौत की घड़ियाँ कभी कम कर नहीं सकतीं ये मौसम इक दफ़अ आए तो फिर आ कर ठहर जाए हसीं शादाब सी कलियाँ निगाहों में समा जाएँ तो फिर ये मर नहीं सकतीं ख़यालों की रवानी में कि जैसे बहते पानी में कँवल खिल जाएँ ख़्वाबों के तो क़ुदरत मुस्कुराती है इशारा कर के तारों से छलकते आबशारों से मधुर सरगोशियाँ कर के हमें रस्ता दिखाती है ये रस्ता किस क़दर हैरान-कुन मंज़िल दिखाता है इसी रस्ते पे इंसाँ ख़ुद को पहली बार पाता है मोहब्बत को सज़ा कहने से पहले सोच कर रखना कि जो इस से बिछड़ जाए उसे मंज़िल नहीं मिलती बिखर जाएँ जो बन कर ख़ाक फिर महफ़िल नहीं मिलती मोहब्बत दाइमी सुख है ये सुख मैं चाहती हूँ तेरी आँखों में नज़र आए कि तू इस काएनात-ए-ख़्वाब का हमराज़ बन जाए मोहब्बत दाइमी सुख है