न जाने किस की ये डाइरी है न नाम है, न पता है कोई: ''हर एक करवट मैं याद करता हूँ तुम को लेकिन ये करवटें लेते रात दिन यूँ मसल रहे हैं मिरे बदन को तुम्हारी यादों के जिस्म पर नील पड़ गए हैं'' एक और सफ़्हे पे यूँ लिखा है: ''कभी कभी रात की सियाही, कुछ ऐसी चेहरे पे जम सी जाती है लाख रगड़ूँ, सहर के पानी से लाख धोऊँ मगर वो कालक नहीं उतरती मिलोगी जब तुम पता चलेगा मैं और भी काला हो गया हूँ ये हाशिए में लिखा हुआ है: ''मैं धूप में जल के इतना काला नहीं हुआ था कि जितना इस रात मैं सुलग के सियह हुआ हूँ'' महीन लफ़्ज़ों में इक जगह यूँ लिखा है इस ने: ''तुम्हें भी तो याद होगी वो रात सर्दियों की जब औंधी कश्ती के नीचे हम ने बदन के चूल्हे जला के तापे थे, दिन किया था ये पत्थरों का बिछौना हरगिज़ न सख़्त लगता जो तुम भी होतीं तुम्हें बिछाता भी ओढ़ता भी'' इक और सफ़्हे पे फिर उसी रात का बयाँ है: ''तुम एक तकिए में गीले बालों की भर के ख़ुशबू, जो आज भेजो तो नींद आ जाए, सो ही जाऊँ'' कुछ ऐसा लगता है जिस ने भी डाइरी लिखी है वो शहर आया है गाँव में छोड़ कर किसी को तलाश में काम ही के शायद: ''मैं शहर की इस मशीन में फ़िट हूँ जैसे ढिबरी, ज़रूरी है ये ज़रा सा पुर्ज़ा अहम भी है क्यूँ कि रोज़ के रोज़ तेल दे कर इसे ज़रा और कस के जाता है चीफ़ मेरा वो रोज़ कसता है, रोज़ इक पेच और चढ़ता है जब नसों पर, तो जी में आता है ज़हर खा लूँ या भाग जाऊँ'' कुछ उखड़े उखड़े, कटे हुए से अजीब जुमले, ''कहानी वो जिस में एक शहज़ादी चाट लेती है अपनी अंगुश्तरी का हीरा, वो तुम ने पूरी नहीं सुनाई'' ''कड़ों में सोना नहीं है, उन पर सुनहरी पानी चढ़ा हुआ है'' इक और ज़ेवर का ज़िक्र भी है: ''वो नाक की नथ न बेचना तुम वो झूटा मोती है, तुम से सच्चा कहा था मैं ने, सुनार के पास जा के शर्मिंदगी सी होगी'' ये वक़्त का थान खुलता रहता है पल ब पल, और लोग पोशाकें काट कर, अपने अपने अंदाज़ से पहनते हैं वक़्त लेकिन जो मैं ने काटी थी थान से इक क़मीज़ वो तंग हो रही है!'' कभी कभी इस पिघलते लोहे की गर्म भट्टी में काम करते, ठिठुरने लगता है ये बदन जैसे सख़्त सर्दी में भुन रहा हो, बुख़ार रहता है कुछ दिनों से मगर ये सतरें बड़ी अजब हैं कहीं तवाज़ुन बिगड़ गया है या कोई सीवन उधड़ गई है: ''फ़रार हूँ मैं कई दिनों से जो घुप-अँधेरे की तीर जैसी सुरंग इक कान से शुरूअ हो के दूसरे कान तक गई है, मैं उस नली में छुपा हुआ हूँ, तुम आ के तिनके से मुझ को बाहर निकाल लेना ''कोई नहीं आएगा ये कीड़े निकालने अब कि उन को तो शहर में धुआँ दे के मारा जाता है नालियों में'
This is a great डायरी शायरी. True lovers of shayari will love this डायरी कि शायरी. Shayari is the most beautiful way to express yourself and this शायरी की डायरी is truly a work of art.