राम के हिज्र में इक रोज़ भरत ने ये कहा क़ल्ब-ए-मुज़्तर को शब-ओ-रोज़ नहीं चैन ज़रा दिल में अरमाँ है कि आ जाएँ वतन में रघुबिर याद में उन की कलेजे में चुभे हैं नश्तर कोई भाई से कहे ज़ख़्म-ए-जिगर भर दें मिरा ख़ाना-ए-दिल को ज़ियारत से मुनव्वर कर दें राम आएँ तो दिए घी के जलाऊँ घर घर दीप-माला का समाँ आज दिखाऊँ घर घर तेग़-ए-फ़ुर्क़त से जिगर पाश हुआ जाता है दिल ग़म-ए-रंज से पामाल हुआ जाता है दाग़ हैं मेरे जले दिल पे हज़ारों लाखों ग़म के नश्तर जो चले दिल पे हज़ारों लाखों कह रहे थे ये भरत जबकि सिरी-राम आए धूम दुनिया में मची नूर के बादल छाए अर्श तक फ़र्श से जय जय की सदा जाती थी ख़ुर्रमी अश्क हर इक आँख से बरसाती थी जल्वा-ए-रुख़ से हुआ राम के आलम रौशन पुर उमीदों के गुलों से हुआ सब का दामन मोहनी शक्ल जो रघुबिर की नज़र आती थी आँख ताज़ीम से ख़िल्क़त की झुकी जाती थी मुद्दतों बा'द भरत ने ये नज़ारा देखा कामयाबी के फ़लक पर था सितारा चमका दिल ख़ुशी से कभी पहलू में उछल पड़ता था हो मुबारक ये कभी मुँह से निकल पड़ता था होते रौशन हैं चराग़ आज जहाँ में यकसाँ गुल हुआ आज ही पर एक चराग़-ए-ताबाँ है मुराद उस से वो भारत का चराग़-ए-रौशन नाम है जिस का दयानंद जो था फ़ख़्र-ए-वतन जिस दयानंद ने भारत की पलट दी क़िस्मत जिस दयानंद ने दुनिया की बदल दी हालत जिस दयानंद ने गुलज़ार बनाए जंगल जिस दयानंद ने क़ौमों में मचा दी हलचल आज वो हिन्द का अफ़्सोस दुलारा न रहा ग़म-नसीबों के लिए कोई सहारा न रहा याद है उस की ज़माने में हर इक सू जारी उस की फ़ुर्क़त की लगी तेग़ जिगर पर कारी दिल ये कहता है कि इस वक़्त ज़बानें खोलें आओ मिल मिल के दयानंद की हम जय बोलें