घर की क़िस्मत जगी घर में आए सजन ऐसे महके बदन जैसे चंदन का बन आज धरती पे है स्वर्ग का बाँकपन अप्सराएँ न क्यूँ गाएँ मंगलाचरण ज़िंदगी से है हैरान यमराज भी आज हर दीप अँधेरे पे है ख़ंदा-ज़न उन के क़दमों से फूल और फुल-वारियाँ आगमन उन का मधुमास का आगमन उस को सब कुछ मिला जिस को वो मिल गए वो हैं बे-आस की आस निर्धन के धन है दीवाली का त्यौहार जितना शरीफ़ शहर की बिजलियाँ उतनी ही बद-चलन उन से अच्छे तो माटी के कोरे दिए जिन से दहलीज़ रौशन है आँगन चमन कौड़ियाँ दाँव की चित पड़ें चाहे पट जीत तो उस की है जिस की पड़ जाए बन है दीवाली-मिलन में ज़रूरी 'नज़ीर' हाथ मिलने से पहले दिलों का मिलन
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