कोई दीवाना अगर रात गए रोता है उस की आवाज़ बहुत दूर सुनाई देगी चाहे लोगों को सरोकार न हो बेबसी छाई हो ख़ामोशी हो हर तरफ़ एक फ़रामोशी हो फिर भी बे-ज़ार न हो कोई दीवाना अगर रात गए रोता है उस की आवाज़ बहुत दूर सुनाई देगी कोई समझाए वो क्यूँ रोता है शायद उन ख़्वाबों की ख़ातिर जो न पूरे होंगे या ब-दस्तूर अधूरे होंगे खोलता है कभी तन्हाई के भारी पर्दे रौज़न-ए-दर से सितारों को चमकता देखे बाग़-ए-नौ-ख़ास्ता हर सम्त महकता देखे और बंजर पड़े अरमानों को सैराब करे देखो इक बूँद गिरी ठहरे हुए पानी में दाएरा बन गई बढ़ती ही गई कर्ब-ए-तूफ़ान-ए-निहाँ मौज के दिल से पूछो फैलते फैलते साहिल से जो मिल जाएगी कोई दीवाना अगर रात गए रोता है उस की आवाज़ बहुत दूर सुनाई देगी