दीवाना By Nazm << एक मा'मूली सा मंज़र कॉफ़ी कप रीडिंग >> बगूला देखना है ना इधर आओ कि मैं मानूस हूँ दुनिया के सहराओं से सारे कि नक़्शा खींच सकता हूँ किसी भी दश्त का मैं तुम्हें कैसा बगूला देखना है ये सब कहते हुए वो इक रस्सी को लट्टू पर लपेटे जा रहा था Share on: