खेत में चंद मुर्ग़ियाँ हम-सिन चुग रही थीं ख़ुशी ख़ुशी इक दिन और दो मुर्ग़े ऐसे नज़र आए लड़ रहे थे जो एक भुट्टे पर इतने में इक तीसरा मुर्ग़ा आ के चुपके से भुट्टा ले भागा रह गए दोनों हो के वो ख़ामोश और दोनों को आया अब ये होश हम न लड़ते तो करते क्यूँ नुक़सान सच तो ये है कि हैं बड़े नादान अब जो पछताए फ़ाएदा क्या है फूट का बस यही नतीजा है इस से मा'लूम हो गया लड़को दो लड़ें तीसरे का अच्छा हो मिल के रहने से काम होता है यही दस्तूर कुल जहाँ का है और लड़ते रहे अगर बाहम पा नहीं सकते फ़ाएदा कुछ हम याद रक्खो ये बात 'जौहर' की ये उड़ाता नहीं है बे-पर की