चलो अब समेटो खिलौने किताबें निकालो ये क्या ढेर तुम ने लगाया हुआ है फटे काग़ज़ों का उधेड़ी हुई डोल्फ़िन माँ ने देखी तो कूटेगी आँसू बहाते हुए तुम मिरे पास आओगे लेकिन मैं सहमी हुई माँ की अँगारा-आँखों से आँखें चुराऊँगी मिट्टी कुरेदूँगी पाँव के नाख़ुन से हाथों के नाख़ुन कतरते हुए अपने दाँतों से मैं ने कई बार देखा है तुम उस की झोली में छुप कर मिरा मुँह चढ़ाते हो चोरी किए उस के पैसों का इमचोर खाते हो पानी टपकता है होंटों से मेरे तो माँ डाँटती है दुपट्टा उड़ाती है जाने वो क्या बड़बड़ाती है कलमोही कहती है किस को मुझे उस ने अब तक बताया नहीं है कि खट्टी ज़बानों पे शीरीनी रक्खो तो उबकाई मछली की मानिंद बाहर लपकती है क्यूँ ख़ैर छोड़ो मुझे तुम फटी डोल्फ़िन सँभालो!