यहाँ सूरज चमकता है नदी के साफ़ पानी में हवा मस्ताना फिरती है यहाँ अपनी रवानी में मगर दिन-भर मैं गुम रहता हूँ ख़्वाब-ए-सख़्त-जानी में सितारे फिर सर-ए-शाम इस फ़ज़ा में तुम उभरते हो मिरी हर शाख़ में आसूदगी की शम्अ जलती है मिरे हर बर्ग से मौजूदगी की लौ निकलती है