मुझे तू मुज़्दा-ए-कैफ़िय्यत-ए-दवामी दे मिरे ख़ुदा मुझे एज़ाज़-ए-ना-तमामी दे मैं तेरे चश्मा-ए-रहमत से काम काम रहूँ कभी कभी मुझे एहसास-ए-तिश्ना-कामी दे मुझे किसी भी मुअज़्ज़ज़ का हम-रिकाब न कर मैं ख़ुद कमाऊँ जिसे बस वो नेक-नामी दे वो लोग जो कई सदियों से हैं नशेब-नशीं बुलंद हूँ तो मुझे भी बुलंद-बामी दे तिरी ज़मीन ये तेरे चमन रहें आबाद जो दश्त-ए-दिल है उसे भी तू लाला-फ़ामी दे बड़ा सुरूर सही तुझ से हम-कलामी में बस एक बार मगर ज़ौक़-ए-ख़ुद-कलामी दे मैं दोस्तों की तरह ख़ाक उड़ा नहीं सकता मैं गर्द-ए-राह सही मुझ को नर्म-गामी दे अगर गिरूँ तो कुछ इस तरह सर बुलंद गिरूँ कि मार कर मिरा दुश्मन मुझे सलामी दे