ऐ ख़ुदा मुझ को वो हौसला दे कि मैं इस सफ़र को जो सब में जुदा और सब से छुपा लम्हा लम्हा रवाँ है मिरी ज़ात में अब रक़म कर सकूँ उन सभों को जो हमराह चलते रहे और ग़ाफ़िल रहे उन को वो हौसला दे कि वो मुझ से मिल के मिरा सामना कर सकें मुझ को पा के हज़ारों बरस जी सकें