ये इस्कूल ये मेरे ख़्वाबों की जन्नत ये विद्या का सागर किताबों की जन्नत यहाँ बुद्धिमानी के सोते रवाँ हैं यहाँ की ज़मीं पर नए आसमाँ हैं वो सब फूल खिलते हैं जो इस चमन में महकते हैं खिलते ही सारे वतन में अंधेरा नहीं है यहाँ रौशनी है यहाँ हर तरफ़ ज़िंदगी ज़िंदगी है यहाँ कोई हंगामा है और न डर है यही एकता और मोहब्बत का घर है सफ़र अपना जारी है बस इस यक़ीं से उठेगा नया एक भारत यहीं से वो भारत कि जिस में सभी एक होंगे वो अपने हों या अजनबी एक होंगे न कोई किसी से भी नफ़रत करेगा हर इंसाँ से इंसाँ मोहब्बत करेगा चलो आज मिल-जुल के माँगें दुआएँ चलें फिर यहाँ एकता की हवाएँ फिर अपने वतन को हम ऐसा बना दें कि दुनिया में दुनिया को जन्नत दिखा दें