बर्ग-ए-आवारा-सदा आए हैं कोई आवाज़ा-ए-पा लाए हैं तेरे पैग़म-रसाँ हैं शायद और पैमान-ए-वफ़ा लाए हैं गुफ़्तुगू नर्म है लहजा धीमा अब के अंदाज़ जुदा लाए हैं इक नदामत भी है पछतावा भी ख़िफ़्फ़त-ए-जुर्म-ओ-जफ़ा लाए हैं आँख में अश्क पशेमानी के होंट पर हर्फ़-ए-दुआ लाए हैं सारे सामान रफ़ूगरी के जेब ओ दामन में उठा लाए हैं मरहम-ए-ज़ख़्म के अम्बार के साथ पारा-ए-ख़ाक-ए-शिफ़ा लाए हैं शाख़-ए-ज़ैतून भी अम्मामे भी हैं और अबाएँ भी सिला लाए हैं हज्र-ए-असवद ने छुआ है जिस को एक ऐसी भी रिदा लाए हैं कुछ मदीने की खुजूरों के तबक़ कासा-ए-सर पे सजा लाए हैं एक मश्कीज़ा-ए-आब-ए-ज़मज़म पुश्त-ए-नाज़ुक पे उठा लाए हैं अगले पिछले सभी मक़्तूलों का गोया कि ख़ून-बहा लाए हैं