आफ़रीनश समय डाल दीजे ख़ुदाया बदन में तनव्वो की हैरत-गरी मेरी मौरूसियत की जड़ों में हर इक साँस लेती इकाई के ख़लियों की मिट्टी बने रीढ़ की मरकज़ी जालियों में अजाइब-कदों का ख़ज़ाना छुपे मेरे हाथों पे भटके हुए राह-गीरों की मंज़िल का नक़्शा बने और आँखों की इन पुतलियों में तिलिस्मी चराग़ों का जंगल बसे अपनी आँखों की इस रौशनी से ज़मीं की तहों को फ़रोज़ाँ करूँ और फ़ाक़ा-कशों की ज़मीनों में गेहूँ की सूरत उगूँ बे-वतन कश्तियों के मुहाजिर क़बीलों का माँझी बनूँ सर्द पर्बत की तीखी हवाओं को सहते मकीनों का सूरज बनूँ और अज़ल से गुफाओं के तारीक मंज़र में पहली शुआ'ओं का मुज़्दा बनूँ हड्डियाँ नोच खाते हुए देवताओं के सीनों में पलती हवस का सफ़ाया करूँ खुरदुरे पाँव वालों के पाँव तले मख़मलीं सब्ज़ सपने बिछाती हुई घास का एक रस्ता बनूँ ये जो मुमकिन न हो तो मिरी ख़ाक से चंद गिरते मकानों की दीवार को ही उठा दीजिए मेरी मिट्टी से मस्कन बना दीजिए