ऐ वतन तेरी मोहब्बत क़ुदरतन इस दिल में है तेरे एहसानात का नग़्मा मिरी महफ़िल में है नक़्श-ए-पा तेरा रहा मंज़िल-नुमा तहज़ीब का राहत-ए-अर्ज़-ओ-समा पिन्हाँ तिरी मंज़िल में है बेवफ़ाई जिस ने की तुझ से यक़ीनन जो भी हो ना-मुकम्मल उस का ईमाँ कुफ़्र उस के दिल में है आबरू-रेज़ी तिरी होने न देंगे ऐ वतन तेरी हर शय की हिफ़ाज़त का इरादा दिल में है इस मोहब्बत को परस्तिश से बदलना भूल है ये तक़ाज़ा ये तवाज़ुन इस दिल-ए-कामिल में है सब से अच्छा मुल्क मेरा नाज़ से जो ये कहे फ़ख़्र बेजा है ये उस का ख़ुद-सताई दिल में है नाम ले कर देश-भक्ति का जो ख़ूँ-रेज़ी करे कैसी साज़िश कैसी नफ़रत उस दिल-ए-क़ातिल में है हम पे ग़द्दारी की तोहमत ये नवाज़िश देखिए देख लीजे ज़ह्र कितना उस रग-ए-बातिल में है इस मरीज़ाना रवय्ये से वतन मजरूह है इस का नुस्ख़ा तू बता 'शाफ़ी' जो तेरे दिल में है