दो गप-बाज़ों ने कल मुझ को एक कहानी यूँही सुनाई झूट है सच है रब ही जाने लोग पुराने ये कहते थे एक ज़माना ऐसा भी था चाँद सितारे सूरज सारे साथ रहा करते थे इक दिन इक नन्हे तारे की सालगिरह जो आई सूरज ने सब आसमान के बाशिंदों को घर पे ज़ियाफ़त पर बुलवाया केक बड़ा सा कहकशाँ के इक बाज़ार से आया खीर मगर घर पर ही पकेगी ऐसा घर में तय पाया चाँद बहुत मसरूफ़ था उस दिन काम बहुत थे सू-ए-इत्तिफ़ाक़ हुआ कुछ ऐसा शकर खीर में भूल से पड़नी रह गई बस ये मुसीबत आई मेहमानों के बीच हुई जब मिस्टर सूरज की रुस्वाई सूरज लाल भभूका हो कर पैर पटख़ता घर से निकला वो दिन है और आज का दिन है चाँद सितारे खोज में सूरज के फिरते हैं रात की वादी में चलते हैं उस के आगे दिन का सहरा उस में सूरज दौड़ा दौड़ा फिरता है दोनों की ये आँख-मिचोली जाने कब तक यूँही चलेगी कब ये दोनों मिल पाएँगे