तेरा चेहरा सादा काग़ज़ है तअस्सुर कोरा कोरा दाग़ है कोई न कोई नक़्श है! क्यूँ ये खिड़की बंद है? आ तुझे अपने लबों से चूम कर तेरे चेहरे को बना दूँ एक अच्छी सी बयाज़ ताकि इस पर हर घड़ी बनते रहें मिटते रहें तेरे अंदर घूमते फिरते हुए ना-शुनीदा और ना-गुफ़्ता हुरूफ़ आ ये खिड़की खोल दूँ ताकि तेरा अंदरूँ (तेरी पलकों की चिक़ों तक ही सही) बाहर तो आए सादा काग़ज़ पर कोई तहरीर हो चौखटे में कोई तो तस्वीर हो वर्ना ये बन जाएगा अख़बार कारोबार-ए-ईन-ओ-आँ का इश्तिहार वक़्त के तलवों से क़तरा क़तरा ख़ूँ तेरे चेहरे पर टपकता जाएगा जम जाएगा ना-शुनीदा और ना-गुफ़्ता हुरूफ़ गड्ड-मडा जाएँगे हो जाएँगे जम्बल-अप' बहम बंद खिड़की के पटों पर शोख़ लड़के कुछ का कुछ लिखते रहेंगे