संग-दिल रिवाजों की ये इमारत-ए-कोहना अपने आप पर नादिम अपने बोझ से लर्ज़ां जिस का ज़र्रा ज़र्रा है ख़ुद-शिकस्तगी सामाँ सब ख़मीदा दीवारें सब झुकी हुई गुड़ियाँ संग-दिल रिवाजों के ख़स्ता-हाल ज़िंदाँ में इक सदा-ए-मस्ताना एक रक़्स-ए-रिंदाना ये इमारत-ए-कोहना टूट भी तो सकती है ये असीर-ए-शहज़ादी छूट भी तो सकती है ये असीर-ए-शहज़ादी