मुंडेरों पर रात रेंग रही है और क्यारियों में पानी की महक सोई हुई है सहमे दरवाज़ों और ख़्वाबीदा रौशन-दानों के साए में चाँदनी का लिहाफ़ ओढ़े कोई गली से गुज़रता है नींद के दालान में दूध भरे बर्तन के गिरने की आवाज़ आती है लम्स और तनफ़्फ़ुस के नम से हवा बोझल है करवटें साँस लेती हैं और कोने में एक चारपाई पर दो खुली आँखों में मोतिए के फूल भीग रहे हैं ओस के गिरने तक ये फूल और भीग जाएँगे