उफ़ुक़ के दरीचे से किरनों ने झाँका फ़ज़ा तन गई रास्ते मुस्कुराए सिमटने लगी नर्म कोहरे की चादर जवाँ शाख़-सारों ने घुँघट उठाए परिंदों की आवाज़ से खेत चौंके पुर-असरार लय में रहट गुनगुनाए हसीं शबनम आलूद पगडंडियों से लिपटने लगे सब्ज़ पेड़ों के साए वो दूर एक टीले पे आँचल सा झलका तसव्वुर में लाखों दिए झिलमिलाए