मैं रौशनी में इतनी ग़लतियाँ करता हूँ जितनी लोग अंधेरे में नहीं करते होंगे मैं इन दिनों एक मंसूबा तय्यार करने में मसरूफ़ हूँ हर तरह की नाकामियों से पाक मंसूबा ताकि जैसे ही मौक़ा मिले में ख़ुद को क़त्ल कर दूँ मुझे ऐसे चौराहे का भी इंतिख़ाब करना है जिस के ऐन-वस्त में लाश को इस तरह लटकाना मुमकिन हो कि उस का नज़्ज़ारा किया जा सके चारों और से संगसारी के हामियों को ख़ुसूसी दावत दी जाएगी ख़ास तौर पर क़रीबी दोस्तों को तुम भी पत्थर ही बरसाना मेरी लाश बर्दाश्त नहीं कर सकेगी फूल की ज़र्ब लेकिन मैं क्या करूँ मैं रौशनी में भी इतनी ग़लतियाँ करता हूँ जितनी लोग अंधेरे में नहीं करते होंगे