तुम्हें याद है मेरी आँखों पर कस कर बाँधा गया वो अपना रूमाल फूलों में दरख़्तों के झुण्ड के दरमियाँ स्टोर रूम में खम्बों के पीछे कभी पलंग के नीचे छुपते फिरते थे तुम मैं कहाँ हूँ मुझे ढूँडो मेरे आगे पीछे दौड़ती भागती तुम्हारी आवाज़ें मुझे छू छू कर दूर हो जाती थीं मैं अपना हाथ फैलाए ढूँड ढूँड कर तुम्हें पा ही लेती थी ये हमारा मन पसंद खेल था न जाने कब कैसे और कहाँ खेल ही खेल में या तुम्हारे दौड़ते भागते क़दमों के ग़ुबार में तुम कहीं खो गए और मेरे गले में अटकी रह गई बस एक धूल खाँस खाँस कर साफ़ करती हूँ निकलती ही नहीं अटा पड़ा है मेरा चेहरा गर्द से आइना देखूँ तो समझ में नहीं आता किसे देख रही हूँ अपनी आँखों पर बँधा रूमाल मैं ने अपने ही हाथों खोला था और एहतियात से बॉक्स में रख दिया था मैं कहाँ हूँ मुझे ढूँड लो वाला खेल खेलने वाला कोई था ही नहीं मगर आज मेरी गोद में तुम्हारा बच्चा मुझ से माँग रहा है वही रूमाल आज निकालूँगी उसे धो साफ़ कर के अपने सीने की ख़ुशबू से बसाऊँगी कि फिर शुरूअ' करना है मुझे वही मन पसंद खेल और इस बार मैं खो जाऊँगी