पहली बार मैं कब तकिए पर सर रख कर सोई थी उन के बदन को ढूँडा था और रोई थी दो हाथों ने भेंच लिया था गर्म आग़ोश की राहत में कैसी गहरी नींद मुझे तब आई थी कब दूर हुई थी पहली बार अपने पैरों पर चल कर बिस्तर से अलग फिर घर से अलग इक लम्बे सफ़र पर निकली थी धीरे धीरे दूर हुई कब नर्म बदन की गर्मी से इस मीठी नींद की राहत से अब सोचती हूँ और रोती हूँ