हिन्दू मुस्लिम भेद मिटा सब से अपनी यारी रख चाहे अपनी जान गँवा आन वतन की प्यारी रख दुश्मन से भी यारी रख ऐसी भी दिलदारी रख मायूसी से मत घबरा कोशिश अपनी जारी रख पहले देनी फ़र्ज़ निभा पीछे दुनिया-दारी रख दूर सफ़र पर जाना है चलने की तय्यारी रख खोटे सिक्के मत अपना आँखों में बेदारी रख ठोंक-बजा कर सब को देख इतनी तो हुश्यारी रख तेरे काम ये आएँगी बातें ध्यान में सारी रख चाहे जितने दीप जला एक गली अँधियारी रख 'नूर' ग़ज़ल के फूल खिला मश्क़-ए-सुख़न को जारी रख लफ़्ज़ों को गुल-ए-रेज़ बना नज़्म-ओ-ग़ज़ल मेयारी रख