किसी शहर में इक कफ़न-चोर आया जो रातों को क़ब्रों में सूराख़ कर के तन-ए-कुश्तगाँ से कफ़न खींच लेता आख़िर-ए-कार पकड़ा गया और उस को मुनासिब सज़ा हो गई कुछ ही दिन ब'अद इक दूसरा चोर वारिद हुआ जो कफ़न भी चुराता क़ब्र को भी खुला छोड़ देता दूसरा चोर भी रुक्न-ए-इंसाफ़ के पास लाया गया और मेहमान-ए-ज़िंदाँ हुआ फिर यकायक किसी तीसरे चोर का ग़ुल मचा जो कफ़न भी चुराता क़ब्र को भी खुला छोड़ देता और मुर्दा बदन को बरहना किसी राह पर डाल देता शहर वाले जब उसे अदालत में लाए तो क़ाज़ी ने उस की सज़ा को सुनाते हुए फ़ैसला यूँ लिखा ''ख़ुदावंद पहले कफ़न-चोर को अपनी रहमत में रखना कि वो आदमी ख़ूब था''