एक ठंडी ओस में लिपटी नज़र की रौशनी है और लबों पर गुज़रे वक़्तों की पुरानी चाशनी है और मैं हूँ फ़ल्सफ़ा रचने की धुन में बिस्तर पर सिलवटें हैं अध-खुली आँखों में ख़्वाबों की धड़कती करवटें हैं और मैं हूँ ख़ुशबुओं से तर हवा में कोई बोझल शाम ढलती रंग सारे हो गए बद-रंग फिर भी साँस चलती और मैं हूँ तुम नहीं हो और तुम्हारी याद के साए भी ग़ाएब भूलते जाते हैं चाहत के मोहब्बत के सभी ढब एक अन-सुलझी पहेली ज़िंदगी भर की तपस्या और मैं हूँ सिर्फ़ मैं हूँ
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