एक वीरान सी ख़मोशी में कोई साया सा सरसराता है ग़म की सुनसान काली रातों में दूर इक दीप टिमटिमाता है गोया तेरे मरीज़-ए-उल्फ़त का साँस सीने में थम के आता है मेरे अश्कों के आइने में आज कौन है वो जो मुस्कुराता है कौन दस्तक सी देता रहता है कैसा पैग़ाम आता जाता है एक गुमनाम रास्ते का निशाँ लम्हा लम्हा किसे बुलाता है क्यों इक अजनबी सदा पे नाज़ रूह का हर तार झनझनाता है शाम का ये उदास सन्नाटा नहीं मालूम ये धुआँ क्यों है धुँदलका देख बढ़ता जाता है दिल तो ख़ुश है कि जलता जाता है