ताक़त हो किसी में तो मिटाए मिरी हस्ती डाइन है मिरा नाम लक़ब फ़िरक़ा-परस्ती मैं ने बड़ी चालाकी से इक काम किया है पहले ही मोहब्बत का गला घूँट दिया है मैं फ़ित्ने उठा देती हूँ हर उठते क़दम से इस देश के टुकड़े भी हुए मेरे ही दम से सरमाया-परस्तों ने जनम मुझ को दिया है मज़हब के तअ'स्सुब ने मुझे गोद लिया है है मुल्क की तक़्सीम लड़कपन की कहानी उस वक़्त तो बचपन था मिरा अब है जवानी घबराता है शैताँ मिरी तक़रीर के फ़न से मैं ज़हर उगलती हूँ ज़बाँ बन के दहन से दरकार हुआ जब भी मुझे ख़ून ज़ियादा मैं आ गई ओढ़े हुए मज़हब का लिबादा मैं देश की क़त्ताला हूँ और सब से बड़ी हूँ बच्चों की भी गर्दन पे छुरी बन के चली हूँ गोली को सिखा देती हूँ चलने का क़रीना मैं छेद के रख देती हूँ मज़लूम का सीना हर सूखे हुए होंट से लेती हूँ तरी मैं दम तोड़ने वालों की उड़ाती हूँ हँसी मैं मासूमों के माँ बाप का सर मैं ने लिया है बच्चों को यतीमी का लक़ब मैं ने दिया है हिन्दू का लहू हो कि मुसलमाँ का लहू हो मतलब है लहू से किसी इंसाँ का लहू हो मिल जाए तो मैं किस का लहू पी नहीं सकती मजबूर हूँ बे ख़ून पिए जी नहीं सकती हर फ़िरक़े के लोगों का लहू चाट रही हूँ फ़सलों की तरह सब के गले काट रही हूँ जिस वक़्त जहाँ चाहूँ वहाँ आग लगा दूँ जिस बस्ती को चाहूँ उसे वीराना बना दूँ जिस शहर को फूँका न मकीं थे न मकाँ था उठता हुआ कुछ देर अगर था तो धुआँ था गुलशन मिरे हाथों यूँही ताराज रहेगा मैं ज़िंदा रहूँगी तो मिरा राज रहेगा ताक़त हो किसी में तो मिटाए मिरी हस्ती डाइन है मिरा नाम लक़ब फ़िरक़ा-परस्ती