अब के दीवार में दरवाज़ा रखूँ या न रखूँ अजनबी फिर न कोई दरपय-ए-आज़ार आ जाए एक दस्तक में मिरी सारी फ़सीलें ढा जाए अब के दीवार में दरवाज़ा रक्खूँ या न रखूँ एक अहराम न चुन लूँ सिफ़त-ए-दूद-ए-हरीर कोई आए तो बस इक गुम्बद-ए-दर-बस्ता मिले राज़-ए-सर-बस्ता मिले लाख सर फोड़े सदा कोई न मुझ तक पहुँचे क़ासिद-ए-मौज-ए-हवा कोई न मुझ तक पहुँचे अब के दीवार में दरवाज़ा रक्खूँ या न रखूँ सारे अंदेशे मगर एक तरफ़ एक तरफ़ तेरी उम्मीद जाने किस वक़्त इधर तेरी सवारी आ जाए अजनबी लाख कोई मेरी फ़सीलें ढा जाए मुझ को दीवार में दरवाज़ा लगाना होगा