जिस राह से गुज़र कर तुम मेरे पास आई थीं उसी राह से गुज़र कर किसी तरह तुम अब लौट जाओ अब हमारे दरमियाँ कोई दार-ओ-रसन नहीं रहे न जाने क्यों हम अब तुम्हारे ग़म में जागने के क़ाइल नहीं रहे मसीह बन के निकले थे लेकिन कहीं कोई क़ातिल नहीं रहे वक़्त के साथ हम ने भी मे'आर-ए-वफ़ा बदला है तुम भी तोड़ दो दिलों के आईने और अपने अज्दाद को रुस्वा कर दो शाह-राहों पर निकलो बन-सँवर कर जिस्म के हर हिस्से का सौदा कर लो कासा-ए-दिल की गदाई हमें मंज़ूर नहीं इस दौर में अब कोई भी मंसूर नहीं