वो शाख़ मज़बूत हो या नाज़ुक ये मुनहसिर है कमाल-ए-फ़न पर कि कैसे तिनकों को जोड़ना है महीन रेशों के ताने-बाने से कैसे दीवार जोड़नी है कहाँ बनाना है दर कहाँ पर जगह दरीचे की छोड़नी है जहाँ से बाद-ए-सबा तो आए दरून-ए-ख़ाना चले जो आँधी गिराने पाए न आशियाना ख़ुलूस-ओ-उन्स-ओ-वफ़ा की रुई यक़ीन-ओ-ईसार के अनासिर जो होंगे ता'मीर में ये शामिल तो शाख़-ए-नाज़ुक पे बनने वाला भी आशियाँ पाएदार होगा