बहुत नर्म-ओ-नाज़ुक हसीं पँख वाली परेशान तितली कभी पत्ते छू कर कभी चूम कर फूल राह-ए-बक़ा ढूँडने में लगी थी किरन आफ़्ताबी थी देती दिलासा हवा भी थपकती थी शफ़क़त से उस को कि इतने में इंसान-ज़ादा कोई चुपके से अपनी चुटकी में ले कर बड़े प्यार से इस हसीं पँख वाली परेशान तितली को दिखला गया है फ़ना का इलाक़ा