टूटे फूटे वा'दों से ख़ुश-फ़हमियों का कश्कोल सजाए मुझ में रहने की ख़ातिर तुम आए इस से पहले मैं दरवाज़ा खोलूँ कुछ बोलूँ अफ़्वाहों की गर्द में लिपटे ज़हर-आलूद मोहब्बत-नामे लिए हुए तुम उधड़े हुए रिश्तों के जामे सिए हुए तुम मुझ में आन समाए मैं रहने के लिए बना हूँ जो आए मुझ में रह जाए मुझे सजाए जितना प्यार करे उतना सुख पाए तुम से पहले भी कुछ लोग यूँही आए थे अपने अंदर मुझ में तब्दीली के ख़्वाब सजा लाए थे और फिर इक दिन जिस ने जो भी अहद क्या वो तोड़ दिया जिस ने जो भी बात कही वो रद्द कर दी लेकिन तुम ने तो हद कर दी मेरे दिन वीरान हुए हैं मेरी सुब्ह के चेहरे पर कितनी रातों के ज़ख़्म लगे हैं मेरी शाम उदास खड़ी है मेरे उफ़ुक़ पर सूरज लहूलुहान पड़ा है दीवारों से ख़ूँ रिसता है दरवाज़ों से मेरा इक इक राज़ अयाँ है मेरे सहन में दुश्मन की साज़िश रक़्साँ है सुना है अब इस हाल में मुझ को छोड़ के तुम जाने वाले हो मेरे बाहर बैठ के मेरी याद का ग़म खाने वाले हो तुम से और उम्मीद भी क्या हो तुम भी तो दुनिया वाले हो जब तक इश्क़ से इश्क़ नहीं मिलता तन्हा दुख सहना है घर की फ़िक्र तो उस को होगी जिस को घर में रहना है