मैं तुम्हारे मेरे उस के सब के दुख को दुख समझने के लिए ये कैसा ख़ाली-पन निगलता जा रहा हूँ हर तरफ़ मेरे समुंदर ही समुंदर है सराबों का मुझे शायद ज़रूरत है किसी बे-चेहरगी की जो मुझे बे-नाम कर दे मेरे एहसासात के आँगन में ऐसी शाम कर दे सौ दिए जल जाएँ कुछ रौशन न हो और मैं अपना सरापा इस अंधेरे में कहीं ख़ामोश गूँगी ख़्वाहिशों के नाम कर के छोड़ जाऊँ