मैं भी पैदा हुई वो भी पैदा हुआ मैं आई तो ख़ुशियाँ बहुत थीं मगर वो आया तो शादयाने बजे मैं फख़्र-ए-माँ-बाप था वो फख़्र-ए-माँ-बाप था मैं ग़म-ख़्वार थी वो जलाली बहुत था मैं फ़र्मां-बरदार थी वो बाग़ी बहुत था मैं ज़मीं था वो आसमाँ था मेरा बचपन छीना गया उस को बच्चा समझा गया मैं ख़तावार थी और बे-ख़ता उस को समझा गया मुझ को पर्दे में रक्खा गया उस को आज़ाद छोड़ा गया मुझ को चौका-बर्तन मिला उस को गेंद और बल्ला मिला मैं भी पढ़ती थी वो भी पढ़ता था मैं नाक़िस-उल-अक़्ल थी वो दाना बहुत था बज़्म-ए-आलम में उस का दर्जा सिवा था क्यूँकि मैं औरत थी और वो मर्द था