फ़ासले की तो ख़ैर बात है और हैदराबाद दिल से दूर नहीं दिल्ली में यूँ ज़बान पे आई दकन की बात सहरा में छेड़ देवे कोई जैसे चमन की बात बज़्म-ए-ख़िरद में छिड़ तो गई है दकन की बात अब इश्क़ ले के आएगा दार-ओ-रसन की बात इक हुस्न-ए-दकन था जो निगाहों से न छूटा हर हुस्न को वर्ना ब-ख़ुदा छोड़ गए हम 'आज़ाद' एक पल भी न दिल को सकूँ मिला रस्ते में दकन भी था कहीं लखनऊ के बा'द 'आज़ाद' फिर दकन का समुंदर है रू-ब-रू ले जा दिल-ओ-नज़र का सफ़ीना सँभाल कर